काबिल
वक्त दर वक्त इतना सितम मिला
परत दर परत इतना जख्म मिला
समहल जाऊं कब....!
तुने इम्तहान मेरा हर पल लिया।
क्या कोई शिकवा है तूझे मुझसे
नसीब है ,या काबिल खुदा को मैं लगा।
परत दर परत इतना जख्म मिला
समहल जाऊं कब....!
तुने इम्तहान मेरा हर पल लिया।
क्या कोई शिकवा है तूझे मुझसे
नसीब है ,या काबिल खुदा को मैं लगा।
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